
नई दिल्ली। ( लायक हुसैन ), अब खाना बनाने नही बल्कि बैठने के काम आता है दिल्ली वालों का सिलेंडर क्योंकि 1100 रुपये का सिलेंडर भरवाना सबके बस की बात नहीं है, दिल्ली में 2 सरकारें हैं तो मार भी दोहरी ही पड़ती है, दिल्ली वालों को बिजली पानी स्वास्थ्य, साफ़ सफ़ाई खाने-पीने की वसतुएं, और सिलेंडर, यह वो वस्तुएं, जो आदमी छोड़ नहीं सकता और महंगाई भी सबसे ज्यादा इन्हीं वस्तुओं पर है, जो लकड़ी पहले 5 रुपये किलो बिकती थी वही अब 25 30 रुपये किलो है छोटे छोटे घरों में लकड़ी जलाना भी मुश्किल हो गया है, ग़रीब का जीवन नर्क बन चुका है, एक तो महंगाई और उस पर बेरोजगारी, अवसाद की स्थिति पैदा हो गई है ।

जनसेवक निगार फ़ारूक़ी ने शाहदरा और सीमापुरी में लोगों से बात की तो वहां अधिकतर लोग बेरोजगार मिले बिजली का काम जानने वाले, पलंबर का काम जानने वाले, मोटर मिकैनिक, फ़िटर सब बेरोजगार मिले, उनका कहना है मार्केट में काम नहीं है ऊपर से महंगाई सब्ज़ी महंगी, तेल महंगा सिलेंडर महंगा, जनता का कहना था सरकार के प्रतिनिधि कभी क्षेत्र में नहीं आते, हाँ बस चुनाव से दो महीने पहले तो आते हैं, न पढ़ाई न कढ़ाई, सिर्फ महंगाई, दो सरकारें अगर अपने आधे-आधे वादे भी पूरे करें तो पूरा सुधार होने की संभावना है।

दिल्ली सरकार ने जगह जगह तिरंगे लगवाए , जिन पर लगभग 20 करोड़ खर्चा हुआ ,राष्ट्र भावना जगाने के लिए, लेकिन उस ग़रीब आदमी में राष्ट्र भावना कैसे जागेगी जो चांद को देख कर कहता हो बिल्कुल रोटी जैसा गोल, दिल्ली में राजाओं के, नेताओ के बड़े-बड़े मुस्कराते फ़ोटो तो दिख जाएंगे, यह बड़े-बड़े मुस्कुराते फ़ोटो शायद छोटे-छोटे लोगों को रुला कर लगवाए गए हैं, कहते हैं कि बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी, यह तो होना ही था, “राजा ने कहा रात है, “मंत्री ने कहा रात है, “संत्री ने कहा रात है, “अधिकारी ने कहा रात है” जनता कह रही है , यह कल सुबह की बात है।