
अक्सर कंपनियां रिटेलर्स, सप्लायर्स, कस्टमर्स, डिस्ट्रिब्यूटर्स, एजेंट्स या एसोसिएट्स को सेल्स टारगेट पूरा होने पर इनसेंटिव देती हैं। दूसरों को प्रोडक्ट्स रिकमेंड करने पर भी इनसेंटिव देती हैं। इस इनसेंटिव को पाने वाले व्यक्ति को इस पर टैक्स चुकाना जरूरी है इनकम टैक्स एक्ट के नए सेक्शन 194R में कहा गया है कि कोई बिजनेस (कंपनी) अगर दूसरे व्यक्ति को कोई ऐसा बेनेफिट देती है जिसका संबंध उसके बिजनेस या प्रोफेशन से है तो उसे उस पर 10 फीसदी (उसकी वैल्यू पर) TDS काटना होगा। अगर आपका कोई बिजनेस है तो इस नियम को ठीक तरह से जान लेना आपके लिए अच्छा रहेगा। अगर सेल्स टारगेट पूरा करने या तय सीमा से ज्यादा खरीदारी करने पर आपको कोई बोनस, इनसेंटिव, गिफ्ट या प्राइज मिलता है तो आपको उस पर टैक्स देना होगा। यह नियम 1 जुलाई, 2022 से लागू होने जा रहा है।
कई बार कंपनियां सप्लायर्स, कस्टमर्स, डिस्ट्रिब्यूटर्स, एजेंट्स या एसोसिएट्स को सेल्स टारगेट पूरा होने पर इनसेंटिव देती हैं। या दूसरों को प्रोडक्ट्स रिकमेंड करने पर भी इनसेंटिव देती हैं। साथ ही बिजनेस रिलेशन डिवेलप करने पर भी इंसेंटिव मिलता है। इस इनसेंटिव को पाने वाले व्यक्ति को इस पर टैक्स चुकाना जरूरी है। लेकिन, अब तक ऐसे मामलों पर इनकम टैक्स विभाग (Income Tax Department) की नजर नहीं होती थी। इसलिए कोई व्यापारी / बिजनेसमैन इस पर टैक्स नहीं चुकाता था। इनकम टैक्स एक्ट के नए सेक्शन 194R में कहा गया है कि कोई बिजनेस (कंपनी) अगर दूसरे व्यक्ति को कोई ऐसा बेनेफिट देती है जिसका संबंध उसके बिजनेस या प्रोफेशन से है तो उसे उस पर 10 फीसदी (उसकी वैल्यू पर) TDS काटना होगा। इस सेक्शन के दायरे में टूर पैकेजेज, फ्री सैंपल्स, गिफ्ट, गिफ्ट वाउचर / कूपंस या दूसरे बेनेफिट या इनसेंटिव आएंगे।
ऐसे इनसेंटिव पूरी तरह से या आंशिक रूप में कैश में हो सकते हैं या इन्हें कैश में कनवर्ट किया जा सकता है। हालांकि, इसमें एक शर्त है। वह यह है कि बेनेफिट देने वाली कंपनी या बिजनेस का टर्नओवर 1 करोड़ रुपये से कम है या इनसेंटिव की वैल्यू किसी वित्तीय वर्ष ( फाइनेंशियल ईयर ) में 20,000 रुपये से कम है तो टीडीएस का यह नियम लागू नहीं होगा।
यह प्रावधान सिर्फ इंडिया के रजिडेंट पर लागू होगा। इसे एक उदाहरण की मदद से आसानी से समझा जा सकता है। मान लीजिए एक इंश्योरेंस कंपनी के एजेंट को सेल्स टारगेट पूरा करने पर कंपनी की तरफ से 50,000 रुपये कीमत का मोबाइल फोन मिलता है तो इंश्योरेंस कंपनी को इस पर (50,000 रुपये पर) TDS काटना होगा। चूंकि यह रकम (इनसेंटिव की कीमत) इंश्योरेंस एजेंट के फॉर्म 26AS में दिखेगा, जिससे इसे अपनी इनकम में जोड़ना होगा।
पहले इस तरह की इनसेंटिव ट्रैक नहीं होते थे, जिससे इनसेंटिव लेने वाला व्यक्ति इस पर टैक्स चुकाने से बच जाता था।अगर कोई व्यक्ति ऐसे इनसेंटिव या बेनेफिट को अपनी इनकम में नहीं जोड़ता है तो इनकम टैक्स डिपार्टमेंट एसेसमेंट के वक्त इस पर इंटरेस्ट या पेनाल्टी लगा सकता है। इसी तरह अगर बिजनेस (जैसे कंपनी) ऐसे इनसेंटिव या बेनेफिट पर TDS काटना भूल जाता है तो उसे इनकम टैक्स एक्ट के प्रावधानों के तहत बिजनेस एक्सपेंडिचर की इजाजत नहीं होगी।इनकम टैक्स एक्ट का यह प्रावधान किसी कंपनी की तरफ से एंप्लॉयी को मिलने वाले गिफ्ट पर लागू नहीं होता है, क्योंकि यह सैलरी के तहत आता है और इनकम टैक्स एक्ट के 192 के तहत इस पर टीडीएस डिडक्ट होता है।
